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 संसार में आज बहुत हलचल मची है जाने-माने विद्वान दुनिया में शांति स्थापित के कार्य में उलझे हैं लेकिन जिस शांति स्थापना के प्रयास किए जा रहे हैं  उस पर पहुंचने के लिए विश्व के कई महान लोग अपना जीवन अर्पित कर गयें हैं  और किए जा रहे हैं ,लेकिन आज हमारी निगाहें कमजोर हैं हमारे दिमाग कुंज हैं हमारा मन कमजोर हो रहा है हम दुनिया की शांति के लिए क्या चिंता करें ,अपने देश के लिए ही कुछ नहीं कर पा रहे हैं इसे अपनी बदकिस्मती ही कहें ,हमें तो अपने दकियानूसी विचारों तबाह कर रहे हैं हम मंदिर मस्जिद और धार्मिक स्थल बनाने के लिए उत्सुक हैं स्वर्ग पाने के लिए आत्मा परमात्मा के विलाप में फंसे हैं, इटली,ईरान, अमेरिका जो इस समस्या से सबसे ज्यादा जूझ रहा है को हम तुरंत भौतिकवादी कह देते हैं उनके जो विचार हैं उनकी ओर ध्यान ही नहीं देते हैं, हम आध्यात्मिक रुझान वाले जो हैं बड़े त्यागी जो हैं हमें ऐसे संसार की बातें ही नहीं करनी चाहिए हमारी ऐसी दुरावस्था हो गई है कि रोने का मन करता है ।
21वीं सदी में हालात सुधर रहे हैं जवानों की सोच विचार पर यूरोप के विचारों का कुछ कुछ असर पड़ रहा है जो नौजवान दुनिया में कुछ तरक्की करना चाहते उन्हें वर्तमान युग के महान और उच्च विचारों का अध्ययन करना चाहिए ,आज समाज में होने वाले दमन के विरुद्ध कौन सी आवाज उठ रही है और स्थाई शांति स्थापना के लिए कैसे विचार उठ रहे हैं उन्हें ठीक से समझे बिना इंसान अधूरा रह जाता है, कोरना से बचने के लिए जब अपने आप को सबसे पृथक करने के लिए कहा जाता है तो तमाम ऐसे लोग झुंड में निकलते हैं ताली और थाली बजाते हैं क्या यही हमारे उच्च विचार हैं? जिसके दिल में जरा भी दया ना हो ,जो रक्त पिपासु  हो, जो नास और महानाश  देखकर करके भी झूम रहा हो, भीड़ के साथ ढोलक ताली थाली बजा रहा हो और आने वाली पीढ़ियों को यही शिक्षा दे रहा है, ऐसे लोग ही देश के सबसे बडे़ नाशक साबित होगें , हमारी साधारण जनता क्या सोचती हैं आपने कल का माहौल देख कर के ही समझ लिया होगा,  "भारत में ज्यादातर लोग  की आस्था उत्सव में है  देश में कोई भी घटना हो उसे गंभीरता से ना लेना हो या उस पर पर्दा डालना हो तो देश में उत्सव सा माहौल बना दीजिए " , जनसंख्या की दृष्टि से देखा जाए तो हम विश्व के दूसरे नंबर पर आते हैं हमें इस समय विश्व को कुछ देना चाहिए था परंतु आज हम अपने आप में ही उलझे हुए हैं भारत के कुछ पूंजीपति लोग अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए कालाबाजारी कर रहे हैं चाहे चैनल हो, चाहे पत्रकार हो,  या सदेश का अन्य कोई भी माध्यम हो  ज्यादातर जगह इन्ही का कब्जा है और ऐसी खबरें दिखा करके जनता को कहीं ना कहीं से दिग्भ्रमित कर रहे हैं ।
जहां तक मेरी जानकारी है एक-दो को छोड़ दिया जाए तो किसी भी पूंजीपति ने या चैनल धारी ने अभी तक भारत में कोई भी राशी माहवारी से बचने के लिए नहीं दिया है और शायद यही हाल बॉलीवुड के लोग का भी हैं जिन्हें जनता सर आंखों पर बिठा देती है जबकि आज देश बड़ी विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है, फिर भी उनके पास अपनी प्यारी जनता को देने के लिए कुछ नहीं है।
 इस देश की विडंबना है कि लोग इतने सीरियस कोरना वायरस को हंसी मजाक का पात्र समझ रहे हैं जहां इस वायरस ने  इटली और अमेरिका के  साथ साथ पूरे विश्व को हिला दिया वही हमारे देश में  ताली और थाली बजाकर के कुछ मूर्ख यह समझ रहे हैं कि देश से बाहर भगा देंगे ,हाल ही के दिनों में राजनेताओं की संवेदना तो मर चुकी है  कोई 33 करोड़ देवी देवता से  उम्मीद कर रहा है कि देश की रक्षा होगी तो कोई "गो करोना गो" जैसे स्लोगन दे करके उम्मीद करता है कि देश बच जाएगा।
 जब ऐसे ही पुलवामा हमला हुआ तो अभी 13 दिन ही नहीं बीते थे कि पूरे भारत में सर्जिकल स्ट्राइक के नाम पर उत्सव मनाया गया और वही आज देखने को मिला एक तरफ सुकमा में 17 जवान मारे गए और हम उसी समय दूसरी तरफ 5:05 पर ताली और थाली का जुलूस निकाल रहे हैं इस जुलूस में मेरठ के एसपी डीएम तक शामिल होते हैं जबकि उन्हें एक पढ़ा-लिखा वर्ग माना जाता है जिहें लग रहा है यह जूलूस निकाल कर के, हमने देश से कोरोना भगा दिया है तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल है क्योंकि जितनी ज्यादा भीड़ बढ़ाएंगे ,उतना ही ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित होंगे ।
यकीन मानिए आपने कोरना भगाया नहीं बल्कि संक्रमण को न्योता दिया है अभी तो जिन्हें हंसी मजाक का पात्र लग रहा है कुछ ही दिनों में हालात और बुरे होने वाले है, हमारे देश के राजनेता कोई भी घटना होती है उसे सफल बनाने के लिए एक उत्सव सा माहौल बनाते हैं जिसमें वह इसलिए सफल हो जाते हैं कि यहां की ज्यादातर जनता एक विशेष मनोभावना से जुड़ी हुई है और वह है उत्सव मनाने की मनोभावना !
एक प्रसिद्ध राजनेता ने कहा था यदि किसी आयोजन को आप सफल बनाना चाहते हैं तो लोगों के अनुसार उस योजना को उत्सव का रूप दे दीजिए क्योंकि ज्यादातर लोगों का मस्तिष्क उत्सव का आदी बन चुका है और उसमें समझने बूझने की क्षमता का अभाव हो चुका है इसलिए आज भारत में इस तरह के आयोजन किए गए है, उम्मीद है कुछ देश के समझदार युवा तमाम रूढ़ीवादी ,कट्टरवादी विचारधारा से ऊपर उठकर के लोगों को समझाने का प्रयास करेंगे और कर रहे हैं तथा आने वाले समय में बेहतर परिणाम मिलेंगे जिससे हम अपने देश में शांति व्यवस्था के साथ-साथ पूरे विश्व में शांति कायम करने में योगदान देंगे
आज शहीद दिवस है शहीद भगत सिंह, राजगुरु ,सुखदेव जी को मेरा नमन ।
शहीद भगत सिंह के विचारों से या लेख और मैं भी बहुत प्रभावित हूं साथ ही साथ उन  सुकमा के 17 शहीद जवानों को नमन के लिए मेरे शब्द और विचार काफी कम है, शहीद जवानों हमें माफ करना हम तुम्हारी शहीदी दिवस पर ताली और थाली बजा रहें है ।
धन्यवाद 

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