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भारतीय मजदूर, उनकी समस्याएं तथा निवारण !

जीता मदकामी एक 12 साल की लड़की जो तेलंगाना में मिर्च के खेतों में कार्य करती हैं 15 अप्रैल को अपने घर के लिए चलती है जिसका घर बीजापुर छत्तीसगढ़ में है और उसके समूह में कई लोग रहते हैं इसमें तीन और बाल मजदूर तथा 8 महिलाएं भी शामिल होती हैं घर पहुंचने से पहले 18 अप्रैल को सुबह दम तोड़ देती है उसको ना तो पहुंचाने की जिम्मेदारी किसी की होती है ना ही उसे खाना खिलाने की जिम्मेदारी किसी की होती है क्योंकि वह एक मजदूर थी असंगठित क्षेत्र की एक मजदूर जिसे कभी कोई फायदा नहीं मिलता, मजदूर ही नहीं बाल मजदूर थी वो  कहने को तो बहुत से कानून हैं लेकिन इस अपराध के लिए सजा किसको मिलेगी?
 दूसरी घटना एक दिल्ली के मजदूर की है अपना घर-बार, माँ-बाप, पत्नी-बच्चे सबको छोड़ मऊ के बृजभान राजभर दिल्ली में मजदूरी करते थे। जिस किराए के मकान में वो रह रहे थे उसके मकान मालिक ने उन्हें 18/04/2020 को कोरोना ग्रसित कह कर मकान से बाहर निकाल दिया। सड़कों पर बिना खाये पिये भूख से पड़े रहने के कारण उनकी मौत हो गई। पुलिस ने घरवालों को उनके मौत सूचना दी और उन्हें पीलिया की बीमारी से ग्रसित होने की बात कही। इनके परिवार की देखभाल करने वाला कोई नहीं क्योंकि वह भी  एक असंगठित क्षेत्र के मजदूर थे ।
तीसरी घटना नाम विक्की भारद्वाज हरियाणा में कार्य करते थे असंगठित क्षेत्र में  मजदूर थे तबीयत खराब हुई ,  तालाबंदी के कारण हॉस्पिटल पहुंचने में देर हुआ और 29 तारीख को इनकी मृत्यु लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में हो गई उनके पिता जो की डेड बॉडी का इंतजार कर रहे हैं , कोरना के कारण अभी भी इकलौते बच्चे की बॉडी इन को नहीं सौंपी गई है और अपने भविष्य को लेकर के चिंतित हैं क्योंकि इनका लड़का भी असंगठित क्षेत्र का मजदूर था, केवल तालाबंदी के दौरान ऐसे मजदूरों की हजारों कहानियां आपको मिल जाएंगी जिनका कहीं ना कहीं आज भी शोषण हो रहा है आज अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस है इसलिए इससे संबंधित जो भी प्रावधान हैं एक बार आप जरूर पढ़िए और हो सके तो शेयर करिए ताकि लोग संगठन की मांग करें !
कार्ल मार्क्स का कथन है , "पूंजीपति समाज में पूंजी स्वतंत्र होती है और उसकी अपनी एक स्वतंत्र पहचान होती है लेकिन उसी समाज में एक मजदूर ना तो आजाद होता है और ना ही उसकी अपनी कोई पहचान होती है "यानी कि कार्ल मार्क्स समाज पर इस बात का स्पष्ट आरोप लगा रहे हैं कि पूंजीपति समाज में इंसान से ज्यादा पूंजी की इज्जत होती है हालांकि कार्ल मार्क्स ने  यह बात एक शताब्दी पहले कही थी लेकिन मजदूर और कामगारों की दयनीय स्थिति को देखकर लगता है कि उनका यह कथन मौजूदा वक्त में भी सही है, आज पूरा विश्व अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस का जश्न मना रहा है जरूरी है कि कामगारों की स्थिति का जायजा लिया जाए
हाल ही में अंतरराष्ट्रीय ऋम संगठन के चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं रिपोर्ट के मुताबिक कार्य से संबंधित कारणों से दुनिया भर में 28 लाख मजदूर हर साल अपनी जान गवाँते हैं जो कि कोरना से हुई मौतो से हाल फिलहाल कई गुना आगे हैं रिपोर्ट के अनुसार इन 86% मौतों की वजह बीमारी होती है जिसमें 31 फ़ीसदी मौतों का कारण रक्त परिसंचरण से जुड़ा होता है तथा 26% का  कार्य के कारण कैंसर हैं गौर करें तो भारत समेत दुनिया भर के मजदूरों की हालत कमोबेश यही है मजदूरों के कल्याण के लिए बने तमाम कानून सवालों के घेरे में है इन कानूनों का क्या औचित्य है? हालांकि मजदूरों की दयनीय स्थिति की खबरें हमेशा चर्चा में रहती हैं लेकिन कानूनों के बेहतर क्रियान्वयन के अभाव में स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हो सका है
ऐसे में सवाल यह है कि क्या सरकार और प्रशासन में प्रतिबद्धता की कमी है या फिर कामगारों में अपने अधिकार के प्रति जागरूकता की कमी हैं  दूसरी तरफ मौजूदा वक्त में ट्रेड यूनियंस का राजनीतिकरण भी उन्हें मजदूरों के हक में आवाज उठाने से रोक रहा है आइए इन्हीं पहलुओं पर विचार करते हैं मजदूर दिवस के इतिहास पर एक नजर डालते हैं मजदूर दिवस की शुरुआत अमेरिका में हुई थी उद्योगपतियो की शोषण की निति से बचने के लिए अमेरिका के मजदूरों ने 1886 मैं अमेरिकी नेशनल यूनियन नामक  एक संस्था बनाई थी ,अधिवेशन में यह मांग रखा गया कि  कारखानों के मजदूरों से 8 घंटे का काम लिया जाए
लगभग कामगारों ने 20 सालों तक इसका इंतजार किया था  और अब  उम्मीद खत्म होती देख , मजदूरों ने संघर्ष का बिगुल 1 मई 1886 को बजा ही दिया,इससे दबे कुचले गुलामों की जिंदगी जी रहे मजदूरों को बल मिला और देखते ही देखते यह आंदोलन पूरे अमेरिका में फैल गया इस तरह मजदूरों के संगठित होने के कारण आंदोलन शक्तिशाली होता चला गया,इसी दीन यानी 1 मई को पुलिस द्वारा निहत्थे बेगुनाहों पर की गई कार्यवाही के मद्देनजर ,4 मई को शिकागो शहर के हेमार्केट चौक पर मजदूरों ने जुलूस निकाला ,जुलूस के पीछे पीछे चल रही पुलिस की टुकड़ी पर किसी शरारती तत्व ने देसी बम फेंक दिया जिसके कारण एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई इसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोली चला दी इस घटना में कुछ प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई मजदूर वर्ग की समस्या से जुड़ी एक घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा ! अंतरराष्ट्रीय मीडिया के समाचार पत्रों में इस घटना को जगह मिली!
1889 में 'इंटरनेशनल सोसलीस्ट कॉन्फ्रेंस' में  नरसंहार में मारे गए निर्दोष लोगों की याद में 1 मई को "अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस "के रूप में मनाया जाएगा तथा इस दिन सभी श्रमिकों का अवकाश रहेगा, अगले ही साल दुनिया भर के देशों में 1मई मजदूर दिवस के तौर पर मनाया गया
जहां तक भारत का सवाल है एक 1 मई 1923 को सबसे पहली बार मद्रास में मजदूर दिवस मनाया गया
किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान ने इस दिन के आयोजन की शुरुआत की थी हालांकि उस समय इसे मद्रास दिवस के रुप में मनाया जाता था आइए भारत में मजदूरों की स्थिति का जायजा लेते हैं हालांकि अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस लाखों मजदूरों के सघर्ष और देखा जाए तो यह एक तरह से गुलामी से आजादी का दिन है लेकिन आज भी देश में मजदूरों के साथ अन्याय और शोषण होता है मजदूरों के लिए 8 घंटे काम करने से संबंधित कानून लागू हो गया है लेकिन इसका पालन केवल संगठित क्षेत्रों में ही किया जाता है और असंगठित क्षेत्रों में कामगारों से 10 से 12 घंटे काम लिया जाता है अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की माने तो बाजार में 2011-12 में असंगठित क्षेत्र का हिस्सा 82.2% था । 80% से ज्यादा असंगठित क्षेत्रों में काम करने पर मजबूर है सामाजिक सुरक्षा के नाम पर कोई सामाजिक सुरक्षा मुहैया नहीं कराई जाती है
79 फ़ीसदी कामगारों के पास कोई लिखित अनुबंध नहीं है इसके अलावा भारत में कुशल श्रमिकों की भारी कमी है सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यमों के साथ-साथ बड़े उद्यमों को भी अकुशल श्रम शक्ति का सामना करना पड़ता है 5% ही कुशल ऋमीक  है  न्यूनतम मजदूरी तय होने के बावजूद मजदूरों से कम वेतन पर काम करवाया जाता है  चार दशक पहले बंधुआ मजदूरी के खिलाफ  कानून बन चुका है लेकिन भारत में अभी भी फ्री फाउंडेशन संस्था के अनुसार 2 करोण बधूआ मजदूर हैं, लेकिन के लिए आवाज कौन उठाएगा, जब संगठन क्षमता की ही कमी है ?????
यह  बंधुआ मजदूरी संविधान के अनुच्छेद 23 का पूरी तरह उल्लंघन है आइए जानते हैं कि महिला कामगारों की स्थिति क्या है भारत  आर्थिक विकास में तेजी से वृद्धि की है लेकिन इसमें महिलाओं की भागीदारी अफ्रीका और मध्य एशिया के गरीब देशों से भी कम है हालांकि 2011 में महिला साक्षरता में 12 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा जरूर हुआ है लेकिन इस दौरान महिला कामगारों की संख्या में 10% कमी आई है रिपोर्ट के मुताबिक 2015-16 में भागीदारी  27.4 से 26% फ़ीसदी तक गिर गया है यह गिरावट कहीं ना कहीं लैंगिक भेदभाव को दर्शाता है लैंगिक भेदभाव का ही एक और उदाहरण है फैक्ट्रियों में आज भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन नहीं दिया जाता है बेशक महिला या पुरुष फैक्ट्रियों में समान काम कर रहे हो लेकिन अमूमन महिलाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं दिया जाता है कुछ जगहों पर  महिलाओं से उनकी क्षमता से अधिक कार्य कराया जाता है
अब बाल मजदूरों की स्थिति पर नजर डालते हैं शिक्षा तथा आर्थिक विकास में प्रगति के बाद भी बाल मजदूरी की समस्या ने अपनी जड़ें जमाए हुए हैं अंतरराष्ट्रीय ऋम संगठन के मुताबिक बाल श्रम की समस्या भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में एक विकट समस्या के रूप में विराजमान हैं अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक दुनिया भर में बाल श्रम में शामिल 152 में से 73 मिलियन खतरनाक काम कर रहे है  खतरनाक कार्यों से दुनिया भर में 45 मिलियन लड़के और 28  मिलियन लड़कियां प्रभावित हैं 5-11 वर्ष की आयु के बच्चों की संख्या बढ़कर 19  मिलियन हो गई है भारत की बात करें तो भारत में वर्तमान समय में 43 लाख बाल श्रमिक कार्य कर रहे हैं बाल मजदूरों के लिए बाल श्रम निषेध और विनियमन अधिनियम 1986 बनाया गया, लेकिन मैं गारंटी के साथ कह रहा हूं कि अच्छे से क्रियान्वयन नहीं हो रहा है!
 यहां गौर करने की बात यह है कि बाल श्रमिक के रूप में यह बच्चे मात्र श्रमिक के रूप में ही दृष्टिगत नहीं होते बल्कि ये अशिक्षा एवं गरीबी के भी जीते जाते चित्र हैं वास्तव में यही अशिक्षा एवं गरीबी मानव तस्करी आतंकवाद मादक पदार्थों की तस्करी जैसे गंभीर अपराधों की जड़ होती है 1987 में राष्ट्रीय बाल श्रम नीति घोषित की गई जिसमें बाल श्रम की अधिकता वाले इलाकों में परियोजना बना कर कार्यवाही करने और बाल श्रमिकों के परिवारों को लाभ के लिए सामान्य कार्यक्रम बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया बाल श्रम निषेध और विनियमन संशोधन अधिनियम 2016 में सभी व्यवस्थाओं और प्रक्रियाओं में 14 साल से कम उम्र के बच्चों को रोजगार पर रखने से पूरी तरह रोक लगा दी गई है इसमें रोजगार निषेध की उम्र को शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अंतर्गत निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा से जोड़ दिया गया है आइए जानते हैं कि कामगारों की स्थिति को बेहतर करने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं दरअसल मजदूरों की स्थिति को बेहतर करने के लिए सरकार हमेशा  ही प्रयासरत रही है
1.आजादी से पहले ही सरकार मजदूरों के लिए कानून बनाती रही है मजदूरों की दशा को बेहतर करने के लिए  1881 भारतीय कारखाना अधिनियम लाया गया !
2.आजादी के बाद संशोधित रूप भारतीय कारखाना अधिनियम 1948 में  अस्तित्व में आया
3.दुर्घटना की स्थिति में कामगारों को मुआवजा देने के लिए अधिनियम 1923 और मजदूरी के भुगतान के लिए मजदूरी भुगतान अधिनियम1936 लाया गया
4.मजदूरों को चिकित्सा मुहैया कराने के लिए कर्मचारी राज्य अधिनियम 1948
5.न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करने के मकसद से न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 पारित किया गया
6.मातृत्व लाभ अधिनियम 1961कानून के रूप में 12 हफ्ते की छुट्टी का प्रावधान था लेकिन मातृत्व लाभ अधिनियम 2017 में इस अवधि को बढ़ाकर 26 हफ्ते कर दिया गया है इसके अलावा हालिया वर्षों में मजदूरों के लिए  एक और कदम उठाए गए हैं प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना के तहत कर्मचारी पेंशन योजना में सरकार की भागीदारी और कर्मचारी भविष्य निधि के लिए यूएयन की सुविधा भी शुरू की गई है
लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद मजदूरों की स्थिति में सुधार देखने को नहीं मिल रहा है  इसके कई कारण हैं
 1. सरकार मजदूरों की स्थिति को बेहतर करने के लिए समय-समय पर कानून के सही से क्रियान्वन के अभाव में उनकी स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हो सका है
2.असंगठित क्षेत्र के कामगारों का शोषण अभी भी जारी है 3.न्यूनतम मजदूरी से संबंधित कानून और राज्यों में न्यूनतम मजदूरी होने के बावजूद कामगारों को यह अधिकार नहीं मिल पा रहा है,  कि वे इसके लिए आवाज उठा सकें!
 4.असंगठित क्षेत्र के कामगारों को मातृत्व लाभ के रूप में अवकाश नहीं मिल पा रहा है
5. काम के समय को निर्धारित करने वाले कानूनों के बावजूद अवैध तरीके से काम लेने की खबरें आती रही हैं
 6.  कई कानूनों के  बावजूद , असंगठित मजदूरों की दशा में तेजी से सुधार नहीं हो पा रहा है तो यकीनन कानून के क्रियान्वयन का अभाव है
7.दूसरी तरफ मजदूरों में अपने हक के लिए लड़ने की प्रतिबद्धता में भी कमी आई है उसको पहले मजदूर संगठन मजदूरों को उनका वाजिब हक दिलाने के लिए कारखाना मालिकों से लड़ते थे लेकिन मौजूदा वक्त में राजनीति के दुष्चक्र में फंस कर यह संगठन अपनी प्रासंगिकता खो बैठे हैं 8. वर्तमान समय में लगभग 16000 ट्रेड यूनियंस है लेकिन स्थानीय नेतृत्व को भाफने और असंगठित क्षेत्र तक अपनी पहुंच बनाने में नाकाम रहे हैं
 समस्या का हल
1 . मजदूर संगठनों को कारोबार के बदलते रूप के मुताबिक खुद को बदलने की जरूरत है
2. महिलाओं और बच्चों की दशा को बेहतर करने के लिए जरूरी है कि कानूनों को धरातल पर उतारा जाए
3.समझना होगा कि एक तरफ जहां महिलाओं से अधिक काम करवाना उनकी शारीरिक दुर्बलता को जन्म देता है वही बाल श्रमिकों का मानसिक शारीरिक और सामाजिक हित प्रभावित होता है
4. मजदूरों की दशा को बेहतर करने के लिए जरूरी है कि उनके कल्याण से संबंधित कानूनों को बेहतर तरीके से लागू किया जाए
5. असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को भी और सारी सुविधाएं प्रदान की जाए जो संगठित क्षेत्रों को दिया जाता है
 6. मजदूरों को कानूनों के प्रति जागरूक होने की जरूरत है ताकि यह अपने भविष्य के नियंता खुद  हो सके!
7. असंगठित व संगठित क्षेत्र के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किया जाए जिससे वे आसानी से अपने खिलाफ हुए शोषण की शिकायत कर सकें ....
..................
                                                         डॉ सोनू कुमार

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