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बुद्ध पूर्णिमा की सबको बहुत-बहुत बधाई!

महात्मा बुद्ध से संबन्धित स्थान
जन्म का स्थान –कपिलवस्तु का लूम्बनी ( आज ही के दिन यानी बुद्ध पूर्णिमा के दिन)

ज्ञान प्राप्ति का स्थान – बोधगया

पहला प्रवचन –वाराणसी के निकट सारनाथ

मृत्यु –कुशीनगर (देवरिया, उत्तर प्रदेश)


बौद्ध धर्म से संबन्धित महत्वपूर्ण शब्दावली

महाभिनिष्क्रमण – सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की उम्र मे गृह त्याग किया जिसे बौद्ध धर्म मे महाभिनिष्क्रमण कहा गया है।

धर्मचक्रप्रवर्तन –महात्मा बुद्ध ने पहला प्रवचन सारनाथ मे दिया जिसे बौद्ध धर्म मे  धर्मचक्रप्रवर्तन कहा गया है।

महापरिनिर्वाण –महात्मा बुद्ध की 80 वर्ष की उम्र मे मृत्यु हो गई  जिसे बौद्ध धर्म मे महापरिनिर्वाण कहा गया है।

निर्वाण – तृष्णा के क्षीण हो जाने की अवस्था।
 
 बौद्ध धर्म की शिक्षाएं
 #चार आर्य सत्य

बुद्ध की दृष्टि में इस संसार में चार प्रमुख सत्य है जो चत्वारि आर्य सत्यानी के नाम से संबोधित किया जाते हैं । वे सत्य है : दुख , दुख समुदाय , दुख निरोध तथा दुख निरोध के उपाय

दुख : बुद्ध के अनुसार यह संसार दुख में है जो जन्म , जरा , रोग , मृत्यु , शोक , विलाप , चिंता निराशा आदि के रूप में प्रकट होता है । प्रत्येक मनुष्य दुखों से ग्रसित है।

दुख समुदाय: बुद्ध ने बताया कि दुख का कारण जन्म है ।यदि जन्म ना हो तो मृत्यु का प्रश्न ही ना उठे। लोभ लालच और सुख की कामना से ही पुनर्जन्म होता है ।

 दुख निरोध बुद्ध : बुद्ध ने बताया कि प्रत्येक दुःख का निवारण भी हो सकता है । जब त्याग के भाव में आने से तृष्णा का अंत हो जाता है। तब मनुष्य को निर्वाण पद प्राप्त हो जाता है ।

 दुख निरोध के उपाय : उन्होंने तृष्णा तथा सांसारिक दुखों का अंत करने के लिए एक मार्ग का प्रतिपादन किया जो अष्टांगिक मार्ग कहलाता है।


#अष्टांगिक मार्ग : मोक्ष को प्राप्त कर आवागमन के चक्कर से छुटकारा पाने के लिए मार्ग बताएं जो इस प्रकार है

एक सम्यक दृष्टि: मनुष्य में सत्य असत्य को पहचानने की क्षमता होनी चाहिए। उसमें पाप-पुण्य सदाचार दुराचार आधे में भेद करने की क्षमता भी होनी चाहिए ।चार आर्य सत्य को जानना भी के माध्यम से ही संभव है।

 सम्यक संकल्प : इच्छा तृष्णा और हिंसा से मुक्त संकल्प ही सम्यक संकल्प कहलाता है ।अर्थात मनुष्य को सभी विकारों से दूर रहना चाहिए ।

 सम्यक वाणी : सत्य विनम्रता और बुद्ध का संयुक्त वाणी सम्यक वाणी है ।किसी को अपशब्द न बोलना किसी की निंदा न करना एवं कठोर वचन न बोलना आदि सम्यक वाणी है ।

 सम्यक कर्म : अच्छे या सत्कर्म करना सम्यक कर्म है । मनुष्य को बुरे कर्म से बचना चाहिए।

 सम्यक आजीव : इसका अर्थ है कि मनुष्य को अपने जीवन के उचित साधनों का ही आश्रय लेना चाहिए ।दूसरों को हानि पहुंचाने वाले आजीविका के साधनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।

 सम्यक व्यायाम : यहां पर व्यायाम से तात्पर्य प्रयत्न या उद्योग है । मनुष्य को सदैव नैतिक मानसिक तथा आध्यात्मिक उत्थान के लिए प्रयास करना चाहिए।

 सम्यक स्मृति: याद रखने से अर्थात मनुष्य को सभी कार्य सावधानी पूर्वक करना चाहिए ।

 सम्यक समाधि : इसके अनुसार मनुष्य को अपने चित्त की एकाग्रता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। क्योंकि उससे अधिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।


#शील : अष्टांगिक मार्ग के अलावा बुद्ध ने नैतिक आचरण के लिए 10 शील बताइए जो निर्वाण प्राप्ति के लिए आवश्यक है जो इस प्रकार है।
1.अहिंसा

2.सत्य

3. अस्तेय ( चोरी ना करना )

4. ऊपरिग्रह ( संपत्ति त्याग )

5. ब्रह्मचर्यव्रत

6. संगीत और नृत्य का त्याग

7.अंजन , फुल सुगंधित द्रव्यों का त्याग

8. असामाजिक भोजन का त्याग

9. कोमल सैयां का त्याग

10.कामिनी तथा कंचन का त्याग

उक्त शिलो में प्रथम पांच गृहस्थों के लिए थे, परंतु भिक्षुओं के लिए समस्त शिलों का पालन करना अनिवार्य था । बुद्ध के यह संदेश सब के लिए है। नर-नारी , युवा वृद्ध ,अमीर गरीब सभी समान रूप से आचरण कर सकते थे।


#कर्मवाद और पुनर्जन्म

महात्मा बुद्ध का विश्वास था कि मनुष्य इस संसार में रहकर जो कर्म करता है उन कर्मों का फल उसे अवश्य भोगना पड़ता है। आत्मा प्रत्येक बार उनके शरीर धारण करती है। और कर्मों के अनुसार दंडित या पुरुस्कृत होती है । ईश्वर तथा आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए बुद्ध पुनर्जन्म में विश्वास करते थे। उनका कहना था कि पुनर्जन्म भी कर्म के नियम से संचालित होता है । बोधिसत्वों रूप में बुद्ध के सहस्त्रो जन्मो का वर्णन मिलता है।


#अनीश्वरवाद
गौतम बुद्ध अनीश्वरवादी थे ।वह इस झंझट में नहीं फंसे कि ईश्वर है या नहीं। ईश्वर के अस्तित्व के संबंध में पूछे जाने पर भी मौन रहे ।उन्होंने यह कहा कि वह है और मैं यही कहा कि वह नहीं है ।एक बार उन्होंने ईश्वर के संबंध में कहा था ईश्वर यदि कहीं है तो वह कर्मों के बंधनों से बंधा हुआ है ।तथा किसी को दंड देने अथवा पुरस्कृत करने में स्वतंत्र नहीं है।


#जाति प्रथा का खंडन

महात्मा बुद्ध ने जाति प्रथा का कड़ा विरोध किया और कहा कि ना कोई धर्म से नीच होता है और ना ऊंचा । नीचता और उच्चतम मनुष्य के कर्मों से आती है ।संसार में सभी व्यक्ति समान है अतः साथ प्रेम पूर्वक रहना चाहिए इन के इस संदेश का लोगो पर गहरा प्रभाव पड़ा । और उसके कारण सभी जातियों के लोग भारी संख्या में उनके अनुयायी हो गए ।



#प्रयोजनवाद

महात्मा बुद्ध प्रयोजनवादी थे ।अतः उन्होंने उन्हीं विषयों पर उपदेश दिया जिन में मानव कल्याण हो सकता था । लोक , जीव और परमात्मा संबंधी अनेक विवादों को उन्होंने व्यर्थ समझा। बुद्ध ने अपने अनुयायियों को इन विषयों पर चुप रहने के लिए कहा !

#क्या लोके नित्य है ?

 #क्या लोक अनंत है ?

#क्या लोक शांत है ?

#क्या लोक अनित्य है ?

#क्या जीव और शरीर एक है ?

#यह जीव और शरीर भिन्न-भिन्न है ?

#क्या मृत्यु के बाद तथागत होते हैं?

#क्या मृत्यु के बाद तथागत नही होते हैं?

#क्या मृत्यु के बाद तथागत होते भी है और नहीं भी?

 #क्या मृत्यु के बाद में तथागत होते ही हैं न ही नहीं होते है ?

 #वेदों और संस्कृत भाषा की पवित्रता में अविश्वास

बुद्ध ने ज्ञान की खोज के लिए वेदों को महत्व नहीं दिया ।उन्होंने अपने अनुभव और तर्क का सहारा लिया। उनका वैदिक यज्ञ कर्मकांड में विश्वास नहीं था। उन्होंने संस्कृत भाषा का तिरस्कार करते हुए। अपने उपदेश का प्रचार व साधारण की भाषा पाली में किया।


##निर्वाण

निर्वाण को बौद्धधर्म का परम लक्ष्य माना गया है। इस धर्म द्वारा निर्धारित निर्वाण अन्य धर्मों के निर्वाण से भिन्न है ।अन्य धर्मों के अनुसार निर्माण या मोक्ष मृत्यु के पश्चात ही मिल सकता था ।परंतु बौद्ध धर्म के अनुसार यह इसी जीवन में संभव है ।महात्मा बुद्ध निर्वाण प्राप्ति के पश्चात भी काफी समय तक जीवित रहे। इसलिए बौद्ध धर्म में इसका तात्पर्य ज्ञान से है। उसकी प्राप्ति के पश्चात मनुष्य जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है और व्यक्ति परम शांति को प्राप्त कर लेता है ।इसको प्राप्त करने के पश्चात मनुष्य रोग,द्वेष एवं उससे उत्पन्न दुखों से मुक्त हो जाता है।

इस प्रकार महात्मा बुद्ध की शिक्षा बौद्ध धर्म के सिद्धांत विश्व के कारण तथा पीड़ित मानवता की मुक्ति का मार्ग है।
#बौद्ध धर्म में ये है 'अ' धम्म

परा-प्रकृति में विश्वास करना। आत्मा में विश्वास करना। कल्पना-आधारित विश्वास मानना। धर्म की पुस्तकों का वाचन करना बुद्ध के अनुसार अ धम्म माना गया! 

#बुद्ध के अनुसार सद्धम्म

जो धम्म प्रज्ञा की वृद्धि करे। जो धम्म सबके लिए ज्ञान के द्वार खोल दे। जो धम्म यह बताए कि केवल विद्वान होना पर्याप्त नहीं है। बुद्ध के अनुसार सद्धम्म है।

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